कुछ सूखे सपने छोड़ आया था तुम्हारी चौखट के बाहर
सोचा की अगर उठा लोगी तो ये फिर से ताज़ा हो जायेंगे
कुछ बातें छिपा दी थी तुम्हारे कपड़ो के बीच
गर कभी तहें बनाओ , तो शायद छिपी सी ये भी सुनाई दे जाये
कुछ यादे रख आया था , उन तस्वीरों के साथ
इस आशा से की कभी उन्हें देखो , तो अनदेखी सी ये भी दिख जाये
कुछ साल अपनी ज़िन्दगी के , तुम्हारी तकिये के नीचे सहेजे हैं
ज़रा संभाल के उन्हें उठाना , कही बेवजह उड़ न जाये
कुछ मेरी वो ठहाको वाली हंसी , तुम्हारे होटों पे छूट गयी है
तुम उदास न होना ,गिरते आंसुओं के साथ कही ये भी बह न जाये
कुछ अपनी वो साथ गुजारी रातें , तुम्हारी चादरों में लिपटी रखी है
उन्हें महफूज़ कहीं छिपा देना , कहीं बेमौसम बरसातों की सीलन में वो ख़राब न हो जाये
कुछ उम्मीदें बिखर गयीं थी , हमारी उस लड़ाई में
अगर मिलें
तो रख लेना , और
मेरी जगह तुम्ही उन्हें जी लेना
मेरी जगह तुम्ही उन्हें जी लेना ।
- त्रिशांत