मैं आज 12 साल का हो गया
मेरा कोई नाम नहीं है
पर फिर भी सब मुझे 'ऐ लड़के ' कह के बुलाते हैं
शायद यही मेरा नाम है
मेरा बाप भी नहीं है
शायद अच्छा है
बबलू का है , वो बबलू को रोज़ पीटता है
मेरी एक माँ थी , पर पिछले साल जाड़े में मर गयी
शायद अच्छा है ,
जब थी तो हर समय रोती थी
उसका फटा कम्बल अब मेरा है
रात को ओढ़ लेता हूँ , मच्हर नहीं काटते
मै चौक की लाल बत्ती पर रहता हूँ
मेरे साथ मेरे जैसे और भी है
और हम सब का कोई नाम नहीं है
शायद अच्छा है ,
इससे हम सब एक बराबर है
ऐसा फकीर बाबा कहते है ,
जब मज़ार ईद पे सजती है ,
तो वो भी हमारे साथ रहते हैं
मुझे अब भूख भी नहीं लगती ,
यूँ आस पास के घरों से रात का खाना आ जाता है ,
रोटी , पानी , चावल , सब्जी , छिलके ,
सब एक में मिले हुए ,
सबको हम एक साथ ही खा जाते हैं ,
यही एक स्वाद पता है हमे
शायद अच्छा है ,
अगर इनका अलग अलग स्वाद पता होता
तो ये खा न पाते
विदेश से फोटो खींचने ,
उनको नाक बहाता हुआ छोटू सब से भाता है
शायद अच्छा है ,
फोटो खींच के पांच का सिक्का जो फेक जाते है ,
परसों आंगनबाड़ी से दीदी आई थी
हर साल एक बार आती है
आला लगा कर करती है जांच
और पुराने कपड़े दे जाती है
इस बार मुझे तीन बारी आला लगाया , गले में चम्मच भी डाली
फिर कापी में कुछ लिखते हुए ngo वाले भैया से बोली
" ये जाड़ा काट लेगा , इसका defence mechanism अच्छा है ,
इसे एक ही स्वेटर देना "
समझ में तो नहीं आया , पर अच्छा ही होगा !
- त्रिशांत श्रीवास्तव
15/6/2012
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heart wrenching!
ReplyDeletei am in love with your poetry!
ReplyDeleteVery touching...why don't you write a short story too
ReplyDeleteHmmmm very well written
ReplyDeletevery well put. bahut achchha hai! :)
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