कल रात अचानक से ठंडी हवा चलने लगी
यूँ मार्च के महीने में ऐसा होता तो नहीं है
मैं उठ के बालकनी में गया
मुझे लगा ऐसा नहीं हो सकता
दूर सामने वाले घर में विंड चाइम
कुछ ज्यादा ही छनक रही थी
मानो कह रही हो
"की आस लगाने में कोई बुराई नहीं "
सामने वाला पेड़ भी चाइम और मेरे बीच डोल रहा था
जैसे समझा रहा हो की
" ये तो हवा ही है
क्या पता कब रुख बदल दे"
मुझे लगा ये क्या बचकानी बातें है
और मैं वापस कमरे में आ गया
यूँ बैठा ही था अपनी कुर्सी में की
दरवाज़े की कड़ी मुझे आवाज़ देने लगी
गुस्से से मैं उठा उसे बंद करने
तो हँसते हुए कहने लगी
"तुम्हे दरवाज़े बंद करने की इतनी जल्दी क्यों होती है
कुछ दरवाज़े कभी, कुछ देर के लिए ही सही
पर खोल भी दिया करो"
मान ली मैंने उसकी ज़िद भी
वापस आ खड़ा हुआ बाहर
अटपटा सा लग रहा था सब कुछ
देखा आसमान में जवाब के लिए
तो कही से एक भटका बादल
एक सोंधी बूँद माथे पे गिरा गया
और मेरे कुछ बोलने से पहले खुद ही कह गया
" क्या तुम्हे ये भी पता नहीं ,
रूमानी बारिशों की कोई 'वजह ' नहीं "
अब उम्मीद कहो या भ्रम
मैं ज्यादा देर जागा नहीं , सो गया था
सवेरे दफ्तर जो था
फ़िर भी दरवाज़ा खुला रख छोड़ा था
क्या पता ये सब सच कह रहे हो
पर तुम आई तो नहीं थी
तुम आई थी क्या ?
त्रिशांत
13/3/2013