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Saturday, October 26, 2013

अब याद नहीं कर पाता हूँ


हर शाम  उकसाती है 
हर रात याद दिलाती है 
हर सुबह समझाती है 
मैं जा जा कर फिर लौट आता हूँ 

वो खो गया है 
जो कभी था ही नहीं 
वो थम सा गया है 
जो कभी चला ही नहीं 
मैं ये सोच के कुछ सहम सा जाता हूँ
हर भीड़ में खुद को अकेला पाता हूँ

वो समय एक सपना था
ये हर बार खुद को समझाता हूँ
हर पत्थर को भगवान
अब मान नहीं पाता हूँ

जो बीत गए हैं दिन
अब याद नहीं कर पाता हूँ
तेरी महक को
अपनी हर कमीज़ से उड़ा हुआ पाता हूँ
अपनी यादों में भी 
तेरा चेहरा अब धुंधला पाता हूँ
अपने जीने में तेरी आदतें 
अब ख़त्म सा पाता हूँ 

बीती रातों के करवट भी 
अब महसूस नहीं कर पाता हूँ 
जब भी तुझे खोजने आता हूँ
अपनी यादों का एक हिस्सा
मरा हुआ पाता हूँ |

- त्रिशांत 

26/10/13

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