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Saturday, August 6, 2011

जहाँ अपने सपने पनप सकते हैं

गहरी नींद और अलसाई आँखों के बीच जो शेहर  होता  है
जिसकी ज़मीन  तुम्हारी यादों की बारिश से हमेशा नाम और मुलायम होती है
जहाँ अपने साथ देखे सपनों के पौधे पनप सकते हैं
वहां मिलना तुम मुझे
जहाँ तुम ओपेरा में नाचती गरीब युवती
और मैं ऊपर गैलरी में बैठा शेहेर का मेयर  होता हूँ
जहाँ तुम असफल नाटक की सफल नायिका
और मैं दरवाजे के छेद से झांकता  हुआ मूक प्रशंसक होता हूँ
जहाँ तुम जवान सरसों की लड़
और मैं तुम्हारे ऊपर से तेज़ गुज़र जाने वाला तेज़ हवा का झोंका होता हूँ
जहाँ हमारा शेहर  सिर्फ हमारा होता है
जहाँ लोग एक दुसरे को उनके पहनावे  से नहीं , धडकनों से पहचानते हैं
जहाँ बदल हँसते हैं , चाँद शर्माता है
और आसमान सिर्फ नीला  होता है
तुम मुझे इसी शेहर में मिलना ,
क्यूंकि सिर्फ यहीं पे भूख के लिए भीख नहीं मांगी जाती
क्यूंकि सिर्फ यहीं पे जीने के लिए ईमान नहीं बेचे जाते
क्यूंकि सिर्फ यहीं पर जंग खली शतरंज की  बिसातों पर लड़ी जाती है
क्यूंक सिर्फ यहीं पर गरीब को सोने के लिए छत मिल पाती है
क्यूंकि  सिर्फ यहीं पे कैफे के टेबलों पर व्यवसायी नहीं दोस्त मिलते हैं
क्यूंकि सिर्फ यहीं पर प्यार ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं , जीने का तरीका होता है
और इस तरीके न कोई सलीका होता है
तुम मुझे इसी  शेहर में मिलना
क्यूंकि यहाँ पे जिंदगी काटी नहीं जी भी जा सकती है
क्यूंकि सिर्फ यहीं पर 'संभावनाएं' और ' वास्तविकताएं' एकसाथ एक ही मंच पर खड़े हो सकते हैं
क्यूंकि सिर्फ यहीं पर तुम - 'तुम' , मैं - 'मैं' और साथ में हम ' हम' हो सकते हैं
अगर मिलना तो तुम मुझे इसी शेहर की इसी ज़मीन पर मिलना
जो गहरी नींद और अलसाई आँखों के बीच बसा है
जहाँ हमारे सपने पनप सकते हैं...........

त्रिशांत