Total Pageviews

Tuesday, January 8, 2013

हमारी उस लड़ाई में

कुछ सूखे सपने छोड़ आया था तुम्हारी चौखट के बाहर 
सोचा की अगर उठा लोगी तो ये फिर से ताज़ा हो जायेंगे 

कुछ बातें छिपा दी थी तुम्हारे कपड़ो के बीच 
गर कभी तहें बनाओ , तो शायद  छिपी सी ये भी सुनाई दे जाये 

कुछ यादे रख आया था , उन तस्वीरों के साथ 
इस आशा से की  कभी उन्हें देखो , तो अनदेखी सी ये भी दिख जाये 

कुछ साल अपनी ज़िन्दगी के , तुम्हारी तकिये के नीचे सहेजे हैं 
ज़रा संभाल  के उन्हें उठाना , कही बेवजह उड़ न जाये 

कुछ मेरी वो ठहाको  वाली हंसी , तुम्हारे होटों पे छूट गयी है 
तुम उदास न होना ,गिरते आंसुओं के साथ कही ये भी बह न जाये 

कुछ अपनी वो साथ  गुजारी रातें , तुम्हारी चादरों में लिपटी रखी है 
उन्हें महफूज़ कहीं छिपा देना , कहीं बेमौसम  बरसातों  की सीलन में वो ख़राब न हो जाये 

कुछ उम्मीदें बिखर गयीं थी , हमारी उस लड़ाई में 
अगर मिलें 
तो  रख लेना , और 
मेरी जगह तुम्ही उन्हें जी लेना
मेरी जगह तुम्ही उन्हें जी लेना ।

- त्रिशांत 


3 comments:

  1. each antithesis is so balanced , my friend , that it seems they are made for each other and then they dissolve into each other as a complete story in itself.


    कुछ अपनी वो साथ गुजारी रातें , तुम्हारी चादरों में लिपटी रखी है
    उन्हें महफूज़ कहीं छिपा देना , कहीं बेमौसम बरसातों की सीलन में वो ख़राब न हो जाये
    I love you for these lines. This is poetry for me.
    many Congratulations and never hesitate to hold the pen when some thing boils up inside you.
    Regards,
    Karan Mirg

    ReplyDelete
  2. kyaa baat hai chhote gulzaar .maza aa gaya pad ke ..carry on thanks for sharing with us

    ReplyDelete