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Saturday, October 1, 2011

सहेज कर मत रखो


  सहेज कर रखी हुई चीज़ें
   कभी नहीं मिलती
    वक़्त पड़ने पर
    सहेजना व्यर्थ हो जाता है
 
    बिखरा रहने दो सामान
    तितर बितर रहने दो
    बेतरतीब

    तुम चुन सकते हो
    जब चाहे तब
    ज़रुरत पड़ने पर
    सब कुछ होता है
    क्यूँकी आँखों के सामने

    सहेज कर राखी चीज़ें
    अदृश्य रहती है
    आँखों से ओझल
    समय पर हमारे काम नहीं आती

     रह जाती हैं सिर्फ पुरातत्व की धरोहर
     बन कर

3 comments:

  1. khayal toh achhe he hote hain tumhare, par ab dekho is kavita mein mujhe shabdo ki rachna, sabse zyada bhai hain... aise he "saheja" karo shabdo ko! ;)

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  2. Thank you !! koshish yahi rehti hai

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