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Friday, June 15, 2012

शायद अच्छा है


मैं  आज  12   साल  का  हो  गया 
मेरा  कोई  नाम  नहीं  है 

पर  फिर  भी  सब  मुझे  'ऐ  लड़के ' कह  के  बुलाते  हैं 
शायद  यही  मेरा  नाम  है 

मेरा    बाप  भी  नहीं  है  
शायद  अच्छा  है 

बबलू  का  है  , वो  बबलू  को  रोज़  पीटता  है 
मेरी  एक  माँ  थी  , पर  पिछले  साल  जाड़े  में  मर  गयी 
शायद  अच्छा  है   ,
जब थी तो  हर  समय  रोती थी 
उसका  फटा  कम्बल  अब  मेरा  है  
रात  को  ओढ़  लेता  हूँ  , मच्हर  नहीं  काटते  

मै चौक  की  लाल  बत्ती  पर  रहता  हूँ 
मेरे  साथ  मेरे  जैसे  और  भी  है 
और  हम  सब  का  कोई  नाम  नहीं  है 
शायद  अच्छा  है  , 
इससे  हम  सब  एक  बराबर है  
ऐसा  फकीर  बाबा  कहते  है  , 
जब  मज़ार  ईद  पे  सजती  है  , 
तो  वो  भी  हमारे  साथ  रहते  हैं 

मुझे  अब  भूख भी  नहीं  लगती  , 
यूँ  आस  पास  के  घरों  से  रात  का  खाना आ जाता  है  , 
रोटी , पानी  , चावल  , सब्जी  , छिलके  , 
सब  एक  में  मिले  हुए  , 
सबको  हम  एक  साथ  ही  खा  जाते हैं   , 
यही  एक  स्वाद  पता  है  हमे  
शायद  अच्छा  है  , 
अगर  इनका  अलग अलग  स्वाद  पता  होता 
तो  ये  खा न  पाते  

कभी  कभार  कुछ एक  लोग  हमसे  मिलने  आ  जाते है  ,
विदेश  से  फोटो  खींचने  , 
उनको  नाक  बहाता   हुआ   छोटू  सब  से  भाता  है 
शायद  अच्छा  है  , 
फोटो  खींच  के  पांच  का  सिक्का  जो  फेक  जाते है ,

परसों  आंगनबाड़ी  से  दीदी  आई  थी  
हर  साल  एक  बार  आती  है 
आला लगा  कर  करती  है  जांच  
और  पुराने  कपड़े  दे  जाती  है 

इस  बार   मुझे तीन  बारी आला  लगाया  , गले  में  चम्मच  भी  डाली  
फिर  कापी  में  कुछ  लिखते  हुए  ngo वाले  भैया  से  बोली  

" ये जाड़ा काट लेगा , इसका  defence mechanism अच्छा  है  , 
इसे  एक  ही  स्वेटर देना  "

समझ  में  तो  नहीं  आया  , पर  अच्छा  ही  होगा  !

- त्रिशांत श्रीवास्तव 
15/6/2012
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